वर्षो से विवादित राम जन्म भूमि के विवाद का समाधान तो बीते साल ही होगया था जब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इसपे अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। बिना किसी बड़े विरोध के पूरे देश ने इस फ़ैसले को स्वीकार किया था और इस मामले में दोनों पक्षो ने अपनी अपनी सहमति जाहिर की थी। यह बात और है कि इसके बाद भी फैसले पे पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी जिसे उच्चतम न्यायालय ने सिरे से खारिज कर दिया था। साथ ही न्यायालय ने मंदिर निर्माण को लेकर एक नया ट्रस्ट बनाने के भी आदेश दिया था जिसे हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा सफलतापुर्वक गठित किया गया।
बीते 5 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कमिटी के गठन की घोषणा संसडी में अपने अभिभाषण के दौरान की। इस ट्रस्ट में के.परासरन, जगतगुरु शकराचार्य, ज्योतिपीठ अधीश्वर स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वतीमहाराज (प्रयागराज),स्वामी गोविन्ददेव गिरी जी आदि 15 प्रमुख सदस्य है। सरकार ने इस कमिटी में एक दलित सदस्य की मौजूदगी भी सुनिश्चित की है। इसके साथ ही सरकार ने कमिटी में उत्तर प्रदेश के एक प्रशासनिक अधिकारी को भी शामिल करने का फैसला लिया है।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष 9 नवम्बर को राम लला जन्म भूमि पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया था और साथ ही राम मंदिर ट्रस्ट के निर्माण का भी आदेश दिया था। न्यायालय ने सरकार को इस ट्रस्ट के गठन के लिए तीन महीने का समय दिया था। सरकार ने अंतिम तिथि से ठीक 4 दिन पहले इस ट्रस्ट के गठन की घोषणा की। विपक्षी दलो ने सरकार पर ये आरोप लगाए की दिल्ली चुनाव के मद्देनज़र प्रधानमंत्री ने इस समय इस ट्रस्ट की घोषणा की है ताकि लोगो का ध्यान इस तरफ केंद्रित कर पाए। नागरिकता कानून और NRC को लेकर सरकार ऐसे भी कई दिनों से लोगो के भारी विरोध का सामना कर रही है। ऐसे में ट्रस्ट निर्माण सरकार के पोलिटिकल एजेंडे का हिस्सा है, इसे काटा नही जा सकता। लेकिन ध्यान इस बात पर केंद्रित करने की आवश्यकता है कि खुद यह ट्रस्ट कितने हद तक पोलिटिकल है और इसके सद्स्यों की राजनैतिक छवि क्या है।
आपको बताते चले कि सरकार ने राम मंदिर निर्माण के लिए बनाए गए इस ट्रस्ट में एक भी राजनैतिक व्यक्तित्व को शामिल नही किया है। इसमें या तो सन्त समाज के सदस्य है या प्रशासनिक क्षेत्र के लोगो को इसमे सदस्यता दी गयी है । साथ ही इस बात का भी खासा ख्याल रखा गया है कि ट्रस्ट में किसी खास समूह, अखाड़े या मठ का वर्चस्व ना रहे। इसलिए इस 15 सदस्यीय ट्रस्ट में हर जाति के ऐसे विशेषज्ञों एवं सन्तो को चुना गया है जिनकी राम भाव के प्रति ईमानदारी और निष्ठा प्रश्नों के परे है।
बहरहाल सरकार से अधिक दारोमदार इस ट्रस्ट पे होगी और उसे अधिक सचेत रहने की आवश्यकता है ताकि ट्रस्ट के भीतर किसी भी प्रकार की राजनीति की गुंजाइश ना रहे। ट्रस्ट के निर्माण के साथ ही अब पूरे विश्व की नज़र भारत पर है। विश्व पटल पर भी राम जन्मभूमि विवाद ने अपना खास असर छोड़ा है। ऐसे में जब ट्रस्ट के निर्माण की घोषणा हो चुकी है तब पुरी दुनिया भी यह देखने को उत्सुक है कि जिस राम मंदिर को लेके भारत मे वर्षो इतना विवाद हुआ,उसके निर्माण के प्रति भारतीय असल मे कितने सजग और समर्पित हैं। निश्चित ही इस ट्रस्ट पर भी राजनैतिक बहसों का दौर चलेगा और ट्रस्ट के सदस्यों को राजनैतिक दलदल में घसीटने की कोशिश भी की जाएगी पर ट्रस्ट को अपनी जिम्मेदारियो को ध्यान में रखते हुए ऐसे किसी भी विवाद से खुद बचाने और मंदिर निर्माण के प्रति पूर्णतः समर्पित रहने की आवश्यकता है।