दिल्ली विधान सभा चुनाव का आधिकारिक आगाज़ चुनाव की तिथियों की घोषणा होने के साथ हो चुका है और पार्टियां अपने चुनावी प्रचार का दौर शुरू कर चुकी है। वैसे तो चुनावी मैदान में तीन प्रमुख दल- भाजपा,कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक दूसरे के आमने सामने है मगर ये सर्वज्ञात है कि दिल्ली विधान सभा के इस चुनाव में मुख्य प्रतियोगिता भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच ही होनी है।
भारतीय जनता पार्टी के लिए ये चुनाव कई मायने रखता है।यदि देखा जाए तो दिल्ली विधान सभा चुनाव में पार्टी की इज्जत साख पे होगी। ऐसी कई वजहें है जिससे ये साबित होता है कि पार्टी के लिए यह चुनाव काफी मायने रखती है।पहली तो यह कि बीते अन्य विधान सभा चुनाव में (मध्यप्रदेश, राजस्थान,हरियाणा,झारखंड,महाराष्ट्र) पार्टी को मन मुताबिक सफलता प्राप्त नही हुई। इन चुनावों के परिणामो ने पार्टी कार्यकर्ताओ के मनोबल को काफी कमजोर किया है।दिल्ली विधान सभा चुनाव में अच्छी जीत ही इसका एक मात्र उपाय है। दूसरी और सबसे खास वजह है खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि जो कि इस पूरे चुनाव में दाव पे होगी।
कुल मिलाकर भाजपा के लिए ये चुनाव काफी महत्वपूर्ण है मगर पार्टि की रणनीतियों से ये साबित होता है कि चुनाव की उनकी तैयारी कितनी लचर है।सबसे बड़ी खामी तो यह है कि अन्य चुनावो के तरह ही भाजपा इस चुनाव में भी राष्ट्रीय मुद्दों का सहारा ले रही है। महाराष्ट्र और हरियाणा में पार्टी ने आर्टिकल 370 का सहारा लिया था और हाल ही में हुए झारखंड चुनाव में पार्टी ने राम मंदिर मुद्दे पे चुनाव लड़ा।तीनो ही राज्यो के चुनाव परिणाम ने यह साबीत किया कि राष्ट्रीय मुद्दों की चुनावी रणनीति ने भाजपा को सफलता की जगह भारी नुकसान ही दिया। दिल्ली में भी पार्टि वही गलती दोहरा रही है।हाल ही में दिल्ली में एक रैली को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने नागरिकता कानून और NRC जैसे राष्ट्रीय मुद्दों को उठाया जिससे ये लगने लगा है कि पार्टी यहां भी राष्ट्रीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ेगी।
दूसरी सबसे बड़ी मुश्किल है चुनावी चेहरे का अभाव।दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को टक्कर देने वाला चेहरा अब तक सामने नही आया है।पहले दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को सामने लाने की योजना बनते दिखी थी मगर क्योंकि वो दिल्ली वाले नही इसलिए सम्भवतः यह फैसला उनके खिलाफ चला गया।अब पार्टी के कईं बड़े नेताओं जैसे की डॉ. हर्षवर्धन, विजय गोयल, प्रवेश वर्मा आदि के नाम सामने आ रहे है जिससे यही लगता है कि पार्टी में आंतरिक कलह चरम पर है।
इसके उलट अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी काफी सम्भलकर कदम बढ़ा रही है।भाजपा के विपरीत आम आदमी पार्टी चुनावी बहस में अपनी सरकार के द्वारा किये गए कार्यों को केंद्र में रख रही है।साथ ही पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर भी कोई विवाद नही। आप सरकार द्वारा चलाई गई स्वास्थ्य सेवाओं की मुहिम,महिलाओं के लिए किए गए प्रयास,स्कूलो की हालत में सुधार,जन जीवन की सुविधाओं के क्षेत्र में किये गए कार्य जैसे कि घर घर जल- बिजली की सुविधाएं उपलब्ध कराना कई ऐसी उपलब्धता है जिसे सरकार अपने चुनावी प्रचार प्रसार में इस्तेमाल कर रही है।
राष्ट्रीय मुद्दों पर पार्टि की ओर से ज्यादा बयान भी सामने नही आये है। नागरिकता संशोधन कानून और जामिया-अलीगढ़ में हुए वाख्यो पे भी उन्होंने एकाध बयान देकर मौन साध लिया।साफ है कि केजरीवाल और उनकी पार्टी राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पे नही उलझना चाहती और सीधे दिल्ली और दिल्ली के लोगो से जुड़े मुद्दों को अपने प्रचार अभियान के केंद्र में रख रही है। केजरीवाल साफ तौर पर समझ चुके है कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि उनपे भारी पड़ती है और यही कारण है कि वे प्रधानमंत्री पे भी किसी प्रकार की टिप्पणी करने से बच रहे है।बेशक विपक्षी पार्टी के द्वारा आम आदमी पार्टी को जेएनयू मामले में घसीटने का प्रयास भी किया गया लेकिन आप ने इसपर कोई खास प्रतिक्रिया ना देकर अपना मत साफ कर दिया है।
बात रही कांग्रेस की तो वह बिल्कुल ही शांत या यूं कहें तो इनएक्टिव दिख रही है। ना तो पार्टी ने अब तक मुख्यमंत्री उम्मीदवार की।घोषणा ही कि है ना ही किसी प्रकार के चुनाव अभियान का आयोजन।ऐसी स्थिति यदि बनी रही तो फैसला आप के हक में जाने की उम्मीद और मजबूत हो जाएगी।
अब जो सबसे मुख्य बात है वह यह है कि दिल्ली की जनता क्या चाहती है।पार्टियां अपने अपने तरीको से जनता को लुभाने की कोशिश कर रही है मगर जनता की इच्छा क्या है।यूं तो इसका नतीजा चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद ही मालूम होगा कि जनता राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने वोट का इस्तेमाल करेगी या अपनी और अपने क्षेत्र की उन्नति के मुद्दों पे अपने वोट बैंक का प्रयोग करेगी।सारे दल इस चुनावी समर में जोर शोर से लगे हुए है,जनता को हर प्रकार से अपनी तरफ आकर्षित करने की होड़ मची है और किसने कितना प्रयास किया और जनता ने किसके प्रयास को सराहा,इसका निर्णय चुनाव परिणाम ही करेगा।
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