दिल्ली विधान सभा चुनाव में एक बार फिर से भारी बहुमत से जीत दर्ज कर आम आदमी पार्टी सत्ता में आने के लिए तैयार है। अपनी विपक्षी पार्टियों के सभी प्रयासों पर पानी फेरकर पार्टी ने कुल 70 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की है। इसी के साथ राष्ट्रीय मुद्दों को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ रही भारतीय जनता पार्टी केवल 8 सीट ही जीत पाई। जबकि पिछली बार की ही तरह इस बार भी कांग्रेस अपना खाता तक खोलने में नाकाम साबित हुई है।
गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर 8 फरवरी को कुल 13,750 मतगणना केंद्रों पर दिल्ली वासियों ने मतदान किया। 14.7 मिलियन मतदाताओं में से 61% मतदाताओं ने इस चुनाव में मत डाले। 11 फरवरी को जब चुनाव के नतीजे आम आदमी पार्टी के पक्ष में आए तो यह सुनिश्चित हो गया कि जनता ने नाम से ज्यादा काम पर भरोसा किया है। तमाम एग्जिट पोल्स चुनाव के बाद से ही आम आदमी पार्टी की दुबारा से सत्ता में आने के संकेत दे रहे थे। मतगणना के दिन भी शुरुआती रुझानों से ही साफ़ हो गया कि पार्टी का सरकार में आना निश्चित है।
मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल द्वारा चलाई गई तमाम योजनाओं का लाभ दिल्ली के हर एक नागरिक तक पहुँचा है। सरकार ने शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में किये गए सुधार कार्यों से जनता के बीच अपना भरोसा कायम किया है। मुफ्त चिकित्सा, मुफ्त बिजली योजना, सरकारी बसों में महिलाओं को किराए पर छूट मिलना आदि ऐसे कुछ अहम फैसले थे, जिन्होंने दिल्ली की जनता को काफी राहत दी। साथ ही सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में भी वृहद स्तर पर कार्य किया। प्राइवेट विद्यालयों के मनमाने फीस कलेक्शन की प्रथा पर लगाम लगाने के साथ ही दिल्ली के सरकारी स्कूलों की व्यवस्था भी ठीक की गई। कुल मिलाकर देखा जाए तो पार्टी ने अपने काम के दम पर चुनाव लड़ा।
जिसका फायदा उसे इतनी बड़ी बहुमत के साथ जीत हासिल कर हुआ। सरकार की योजनाओं ने लोगो के जीवन को काफ़ी सरल तो बनाया ही है साथ ही राजधानी के विकास में भी अहम भूमिका निभाई है।
इसके विपरीत भारतीय जनता पार्टी की यदि बात की जाए तो पिछले चुनाव के मुकाबले बेशक पार्टी को अधिक सीटें मिली हैं। लेकिन जिस स्तर की उम्मीद पार्टी ने की थी उस स्तर की कामयाबी हासिल करने से वह चूक गयी। इस चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मुद्दे जैसे कि NRC ,CAA और राम मंदिर निर्माण को अपने चुनावी एजेंडे के केंद्र में रखा। यही कारण है कि पार्टी को एक बार फिर से हार का सामना करना पड़ा। पिछले दिनों हुए अन्य राज्यो के चुनावो में भी पार्टी ने यही गलती की थी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने फिर से इन्ही मुद्दों पर भरोसा किया जिससे कि उसे एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा।
शाहीन बाग के मुद्दे पर भी पार्टी ने जिस हिसाब से राजनीति की ,और जैसे फायदे की उम्मीद की उससे साफ होता है कि जनता ने पार्टी के इन प्रयासों को सिरे से खारिज किया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री पद के चेहरे के अभाव ने पार्टी को खासा नुकसान पहुचाया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि के दम पर चुनाव के नतीजों में सुधार की आशा करना पार्टी के लिए महंगा साबित हुआ।
पूरे चुनाव में कांग्रेस की स्थिति यथावत कमज़ोर और लचर थी। जिसका खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ा। पिछले विधानसभा चुनाव के तरह ही इस बार भी पार्टी अपना खाता तक नही खोल पाई और शून्य पर सिमट कर रह गयी। ऐसा माना जा सकता है कि चुनाव में अपनी प्रतिद्वंदी पार्टी बीजेपी की स्थिति को कमज़ोर बनाये रखने के लिए कांग्रेस ने अपने चुनावी अभियानों पर विशेष ध्यान दिया ही नही। परन्तु ऐसे बिना एक भी सीट जीते शून्य पर सिमट जाना पार्टी के लिये निश्चित तौर पर दुर्भाग्यपूर्ण है।
दिल्ली विधान सभा चुनाव के नतीजों से एक बात तो साफ हो गयी है कि जनता ने नाम से ज़्यादा काम पर अपना विश्वास जताया है । आम आदमी पार्टी को इतने बड़े बहुमत से दोबारा सत्ता में लेकर आई है। निश्चित ही पार्टी पर इस बार अपने उत्तरदायित्वो को निभाने का भार अधिक होगा और जनता की उम्मीदे भी अधिक होंगी। देखना यह है कि पार्टी अपने दूसरे कार्यकाल में जनता के लिए और क्या खास योजनाएं लेकर आती है, जिससे कि जनता और भी समृद्ध और सशक्त हो सके।